5 जुलाई 2020 को महाराष्ट्र के गवर्नर माननीय श्री भगत सिंह कोशियारी को ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन के एक ट्रस्टी मुकेश सारडा ने अपनी
ओर से एक स्पष्टीकरण पत्र पेश किया था, जिसमें मुझे कुछ बिंदु रोचक लगे, उनमें से एक यह है :
“ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजार्ट एक शैक्षणिक फाउंडेशन है, न कि आरती–पूजा की जगह | कोरेगांव पार्क के विकास नियंत्रण के नियम कभी भी आरती-पूजा परिसर की इजाजत न देंगे, और वैसे भी वह ओशो के मार्गदर्शन के पूर्णतः विपरीत होगा|”
इसके उत्तर में हमें यह कहना है कि हमने तो कभी परिसर में आकर आरती- पूजा की इजाजत मांगी ही नहीं थी. यह अलग बात है कि OIF के कारनामों का विरोध करने वाले संन्यासियों में एक नाम “आरती राज़दान” है. कहीं इस नाम की वजह से मुकेश सारडा को कोई भ्रान्ति तो नहीं हो गयी कि हम चुआंगत्सु में ओशो के समाधि स्थल पर सैकड़ों की संख्या में आकर आरती करेंगे। नहीं जी, ऐसा नहीं होगा। केवल एक आरती राज़दान आएगी और वह वहां मौन ध्यान में बैठेगी जैसे अन्य सभी लोग बैठते हैं. ओशो का कोई भी शिष्य इस बात को भली भांति जानता है कि ओशो का समाधी स्थल मौन ध्यान में बैठने के लिए है. कोई गलती होती है तो आप लोगों से ही होती है जब आप वहां हल्ला-गुल्ला वाली, रेचन वाली थेरेपी ध्यान विधियों से noise pollution उस स्थान के गहन मौन को प्रदूषित करते हैं. हमें इन विधियों के वहां पर प्रयोग से ऐतराज़ है. वहां केवल मौन ही रहना उचित है, थेरेपी के लिए अन्य थेरेपी चैम्बर्स बने हुए हैं, उन्हें वहां कीजिए। खैर छोड़िये, अभी तो आप कुछ भी नहीं कर रहे हैं, सब कुछ सूना छोड़ रखा है आपने। आप स्वयं कहाँ रहते हैं किसी को पता नहीं।
और आप कह रहे हैं: “मेडिटेशन रिजार्ट में आनेवालों की संख्या 400% बढ़ गई है| 30 साल पहले, ओशो के शरीर छोड़ने के समय पर, सम्मिलित हो रहे लोगों में 12-14% भारतीय नागरिक होते थे| अब वह संख्या 67% है| बाकी के 33% लोग सारी दुनिया के 100 से अधिक देशों से आते हैं|” वे सब कब आएंगे और कब आप द्वार दरवाज़े खोलेंगे उनके आने के लिए, कब उन्हें निमंत्रण देंगे?आप स्वयं कहाँ हैं, बताएँगे?
ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन के ट्रस्टी मुकेश सारडा ने आगे लिखा:
“हम एक मेडिटेशन स्कूल हैं जो भारत की ध्यान की विरासत में से विधियों का उपयोग करता है, और कुछ नई ध्यान विधियां भी जिन्हें ओशो ने समकालीन मनुष्य के लिए निर्मित किया है|”
हम “एक मैडिटेशन स्कूल हैं”–नहीं, ओशो ने तो एक बड़ा सपना दिया था और कहा था : And the World Academy of Creative Science, Arts and Consciousness will be the first step. “सृजनात्मक विज्ञान, कला और संस्कृति की विश्व अकादमी” नाम भी दिया था. निश्चित ही, यह थी ओशो आश्रम के इस स्थान की परिकल्पना, अगर आपको याद हो! लेकिन आप तो उस स्थान के विस्तार की बजाय उसे बेचने में लगे हैं !
https://www.osho.com/read/osho/vision/the-greatest-challenge-the-golden-future/the-greatest-synthesis
नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जायेगा, मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे!
स्वामी चैतन्य कीर्ति